रिश्तों के कुओं की वो गहराईयां...... जिनमें
भावनाओं का पानी अब सूख चुका है.. संवेदनाओं का खोखलापन गूंज रहा है.... प्यार के
मजबूत पत्थरों पर अब अंवाछित अभिलाषाओं की काई जम रही है... संबंधों की विश्रंभ
(भरोसे) डोर कमज़ोर पड़ने लगी है... भागते-हांफ्ते रिश्तों की हर पल बदल रही है
परिभाषा.. आखिर क्यों रिश्तों के कदम अब लड़खड़ाने लगे हैं....?
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