Saturday 9 March 2013

हिंसा की आग में जलने के पीछे का सच..!


1971 में स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आया बांग्लादेश आज जल रहा है। हालात कुछ-कुछ मुक्त संग्राम जैसे हो गए हैं जो बांग्लादेश को आजादी दिलाने के लिए छिड़ा था। बांग्लादेश में एक बार फिर बदलाव की बयार बह रही है। ढाका के शाहबाग चौक के हालात ठीक-ठीक मिश्र का तहरीर स्क्वायर जैसे बन गए हैं। नौजवानों की ऊर्जा और गुस्से ने इस इलाके को ‘प्रोजोन्मो छॉतोर’ करार दिया यानि नई पीढ़ी का चौराहा। दरअसल हिंसा की आग के पीछे की असल चिंगारी 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के दौरान लगी थी। इस युद्ध अपराध के लिए बांग्लादेश के एक सीनियर इस्लामी नेता को मौत की सजा दी गई। जिसके बाद विरोध की चिंगारी देखते ही देखते हिंसा की एक ऐसी भयावह आग में तब्दील हो गई जिसमें 52 लोग जलकर खाक हो गए। इस इस्लामी नेता का नाम है दिलावर हुसैन सईदी। सईदी को युद्ध अपराधों की जांच के लिए गठित ट्राइब्यूनल ने गुरुवार को मौत की सजा सुनाई थी। बढ़ती हिंसा को देखते हुए पूरे देश में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। शहबाग नाम से चलाए जा रहे इस आंदोलन की अगुवाई बांग्लादेश की नई जमात यानि कि नई पीढ़ी कर रही है। ये वो पीढ़ी है जो आजादी की लड़ाई के वक्त इस्लामी कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों द्वारा आंदोलन के दमन में तत्कालीन पाकिस्तानी हुकूमत की मदद करने पर आक्रोशित है। युद्ध अपराधी राजनीतिक कारणों से अब तक बचते आ रहे थे। आपको बता दें कि 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ 9 महीने तक चले बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान दिलावर को बलात्कार, नरसंहार और अत्याचार के 20 आरोपों में दोषी पाया गया था। जिसको देखते हुए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई। लोगों का ये गुस्सा तब और भड़क उठा जब इस मूवमेंट से जुड़े एक ब्लॉगर राजीव हैदर का घर लौटते हुए कत्ल कर दिया गया। लोगों ने जमात के नेताओं को सजा देने की मांग और तेज कर दी। सईदी के खिलाफ फैसले को लेकर एक ओर जहां उसके समर्थक हिंसा पर उतर आए, वहीं 1971 के स्वतंत्रता संघर्ष में भाग ले चुके लोग, युवा और सत्तारूढ़ आवामी लीग के समर्थक ढाका और अन्य बड़े शहरों में सड़कों पर आकर जश्न मना रहे हैं। हिंसा की शुरुआत तब हुई जब फैसले की निन्दा कर रहे जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ता पुलिस से भिड़ गए। इन लोगों ने पुलिस के शिविरों पर हमला किया, हथियार लूट लिए और सत्तारूढ़ आवामी लीग के कार्यालयों को आग लगा दी। आपको बता दें कि दिलावर हुसैन सईदी, जमात-ए-इस्लामी के उपाध्यक्ष हैं। जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों पर ये आरोप है कि आजादी की इस लड़ाई को दबाने के लिए उन्होनें उस वक्त लगभग 30 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया था और 2 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया था। इन कट्टर नेताओं को अब तक सजा न हो पाने के पीछे दरअसल राजनीति है क्योंकि बांग्लादेश में इसी साल आम चुनाव भी होने वाले हैं। जमात ए इस्लामी का आरोप है कि शाहबाग मूवमेंट को सत्तारूढ़ शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग का समर्थन हासिल है। देश के हालात जो बन रहे हैं वो बता रहे हैं कि देश में संघर्ष छिड़ा है उसके दो छोर हैं एक उन युद्ध अपराधियों का है जो हिंसा पर उतारू हो गए हैं और दूसरा छोर उन युद्ध अपराधियों के खिलाफ शाहबाग चौक पर इक्ट्ठा हुए उन नौजवानों की जिन्में आक्रोश की ज्वाला जल रही है।


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