Monday 18 March 2013

सहमति-असहमति ?




                                


ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजै.. एक आग का दरिया है और डूब के जाना है... मिर्जा गालिब की इन पंक्तियों में इश्क की रूमानियत साफ झलकती है... कहते हैं इश्क कभी भी , कहीं भी और किसी से भी हो सकता है.... इस इश्क की न तो कोई उम्र होती है और न ही कोई दायरा जो इसे बांध सके ... राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत, सावित्री-सत्यवान जैसी पौराणिक प्रेम कथाएं हो या फिर रानी रूपमती-बाज बहादुर, सलीम-अनारकली, लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, ढोला-मारू, शीरीं-फरहाद, रोमियो-जूलियट जैसी अनेकों प्रेम चरित्र गाथाएं...ये सभी इस इश्क की मिसाल रही हैं...... लेकिन क्या इस इश्क का स्वरूप आज भी वैसा ही है जैसे कि पहले हुआ करता था... यह सवाल आज बार-बार किसी न किसी रूप में उठता है।
इश्क... जो सदियों से इस दुनिया में किसी न किसी रूप में मौजूद रहा है.... भारत में भी इसके कई रूप रहे हैं... एक वो रूप है जिसमें गोपियों के संग कृष्ण ने रासलीलाएं की.... तो एक वो रंग भी है जिसमें शाहजहां ने मुमताज की याद में ताजमहल तक बनवा दिया.... दरअसल इश्क ...  जज़्बात, चाहत , रोमांस का एक ऐसा संगम हैं..... जिसमें हर शख्स कभी न कभी गोते जरूर लगाता है..... कहते हैं जिस तरह से सुख दुख एक दूसरे से जुड़े होते हैं.... ठीक उसी तरह जब किसी को इश्क होता है तो उसके साथ चाहत, यादें , जुदाई , दर्द जैसी कई चीज़ें अपने आप जुड़ जाती हैं.... और शायद यही तो होता है इश्क अगर ये सभी चीज़ें न हो तो इश्क अधूरा सा लगने लगता है.... जिस तरह से एक बच्चे का आकार जन्म के समय बहुत छोटा होता है... ठीक वैसे ही जब इश्क अपने शुरुआती दौर में होता है तो वो भी बहुत छोटा होता है..... लेकिन जैसे-जैसे इश्क के आगोश में दिन बीतते जाते हैं वैसे-वैसे इसका सफर  लंबा होता चला जाता है और इसके साथ ही इश्क की मजबूती भी बढ़ने लगती है..... और इस इश्क की बढ़ती मजबूती एक दिन ले जाती है उस मुकाम पर जिसे कहा जाता है सेक्स ... जी हां वही सेक्स जिसे आज भी भारतीय समाज में टैबू यानि की अपराध बोध के रूप में देखा जाता है.......
कहा जाता है कि मुहब्बत अगर एक खूबसूरत एहसास है तो उस एहसास को जाहिर करने का एक बेहतर जरिया है सेक्स... लेकिन सेक्स को लेकर हमारे समाज की क्या सोच है.... क्या हम इस मुद्दे पर अब खुलकर बात करने लगे हैं.... ये कुछ ऐसे सवाल हैं.... जिनका जवाब मिलना अब बेहद जरूरी है .... भारतीय समाज की एक खास विशेषता है .... और वो ये है कि यहां के लोग परंपरा को आधार मानकर ही आगे बढ़ते हैं... संयुक्त परिवार होने के चलते यहां परंपरा विरासत में मिलती है.... जिसका पालन करना बेहद ही जरूरी माना जाता है.... शायद इसी परंपरा का ये तकाजा है कि आज भी भारतीय समाज में सेक्स को लेकर खुलकर बातें नहीं हो पातीं.. यहां तक कि इसे एक टैबू यानि की अपराध बोध की दृष्टि से भी देखा जाता है.... यहां का समाज हर बार परंपरा की दुहाई देकर इस मुद्दे पर बहस करने से बचता रहा है.... शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि सेक्स को लेकर आज भी कई भ्रांतियां हमारे समाज में बनी हुई हैं। सेक्स अगर एक तरफ उत्सुकता, भावना, अपनापन और प्यार को गहरा करने का माघ्यम बन सकता है। तो वहीं दूसरी तरफ ये असमंजस, अपराघबोध, अवसाद, डर और गुस्से को भी बढा सकता है, क्योकि सेक्स के प्रति हमारा नजरिया बहुत हद तक हमारे समाज, हमारी परवरिश और सेक्स की जानकारियों के स्त्रोतों से लेकर हमारे अनुभवों और बहुत हद तक हमारी उम्र पर भी निर्भर करता है. उम्र पर इसलिए क्योंकि हमारे जीवन का हर काम कहीं न कहीं उम्र पर निर्भर करता है.. सेक्स को लेकर उम्र को कई संदर्भों में देखा जाता है.... फिर चाहे वो वैज्ञानिक हो , नैतिक हो या फिर कानूनी.... इन तीनों ही नज़रिए से सेक्स के लिए एक उम्र निर्धारित होती है... यह उम्र क्या हो ... इसको लेकर लगातार बहस का दौर बना हुआ है.... और देशों को देखें तो वहां पर इस उम्र को लेकर विभिन्नताएं नज़र आती है.....
देश              सहमति के लिए उम्र
जापान-               13
पाकिस्तान             16
श्रीलंका                16
चीन                  16
रूस                   16
इंगलैंड                 16
पुर्तगाल                14
नॉर्वे                   16
इटली                  14
जर्मनी                 14
अमरीका               16-18
कनाडा                 16
कोलम्बिया              12
आस्ट्रेलिया              16
उम्र का संदर्भ इस मायने में भी बहुत महत्तवपूर्ण है क्योंकि काफी लंबे अर्से से इस बात पर बहस होती आई है कि भारत में सहमति से सैक्स करने की उम्र क्या हो....  दरअसल यह पूरी बहस दिल्ली के वसंत विहार में हुई बर्बर गैंगरेप की घटना के बाद सड़कों पर उतरे युवाओं के गुस्से की उपज थी.... जब इस मुद्दे पर मंथन किया गया तो एक कैबिनट मंत्रियों की सहमति से 16 साल पर सहमति बनी और ये कहा गया कि अगर 16 साल और उसके बाद अगर कोई सहमति से सैक्स करते हैं तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा.... जबकि इससे पहले हालात यह थे कि अगर दो जोड़े आपस में सहमति से सेक्स करते हैं तो लड़की के कहने पर भी कि उसकी सहमति से उन दोनों ने संबंध बनाए फिर भी कानून उम्र के संदर्भ में लड़की को छोड़ देता है और लड़के को बलात्कारी घोषित कर दिया जाता है.... इसी विरोधाभास की स्थिती से ही पैदा होती है सहमति से संबंध को लेकर उम्र पर बहस.....
सहमति से संबंध बनाने को लेकर उम्र पर जो विवाद शुरु हुआ दरअसल उसे कानूनी नज़रिये से भी समझने की जरूरत है.... लेकिन उससे पहले जरा एक नज़र इतिहास के पन्नों पर .........कहते हैं जिस तरह से भूख प्यास लगती है ठीक उसी तरह से सेक्स की भूख भी हर इंसान की होती है.. जिसे मिटाने के लिए उसे इस क्रिया को करना ही पड़ता है.... इस संदर्भ में अगर इस विषय को देखा जाए तो ये एक सामाजिक विषय है और इसके चलते ये समाज का एक अंग भी है...... लेकिन भारतीय समाज की परंपरा इस सच्चाई से मुंह छिपाती हुई दिखती है.... तभी तो यहां आज भी सार्वजनिक रूप से इसे अपराध की दृष्टि से ही देखा जाता है... लेकिन यहां बहस का मुद्दा यह नहीं है कि इसे भारतीय समाज किस नज़रिए से देखता है बल्कि यह है कि कानून सहमति की किस उम्र पर सहमत होता है... अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो हम देखेंगे कि कानूनी दस्तावेज़ों में सबसे पहले 1860 में आईपीसी में सहमति की उम्र को 10 साल रखा गया था... औऱ इस दौर में शादी की उम्र को भी 10 साल निर्धारित किया गया... लेकिन जब 1890 में फुलमा केस आया जिसमें फुलमा नाम की एक 11 साल की लड़की की शादी हुई औऱ पहली ही रात उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के चलते उसकी मौत हो गई... इस केस के चर्चा में आने से तुरंत उम्र के लिए एक आयोग का गठन किया गया.... इस कमिशन की सिफारिश के बाद 1891 में सहमती से संबंध बनाने की उम्र को बढ़ाकर 12 कर दिया गया.... लेकिन धीरे-धीरे 13 फिर 14 औऱ आखिर में 15 पर इसे रोक दिया गया.. धीरे-धीरे वक्त बीतता गया और भारतीय समाज के ढ़ांचे में भी बदलाव आता रहा.... ये वो दौर था जब 1978 में इंदिरा के खिलाफ मजबूती से खड़े हुए जन आंदोलन से एक राजनीतिक विकल्प का रूप अख्तियार कर चुकी जनता पार्टी सत्ता में आई... तब उस सरकार ने मैरीजेबल एक्ट में बदलाव कर उम्र को 15 से बढ़ाकर 18 कर दिया और बाद में इस उम्र को और बढ़ाकर 21 तक कर दिया..... और अगर आईपीसी 375 की बात करें तो इसमें 16 साल पहले से ही है... आपको बता दें कि आईपीसी 375 को बलात्कार के संबंध में बनाया गया था... अगर इस नज़रिए से देखा जाए तो भारत में सहमति की उम्र तो 16 साल है लेकिन शादी की उम्र लड़की के लिए 18 और लड़के के लिए 21 साल तय की गई है ... वाकई में उम्र को लेकर इस तरह की भिन्नता कई सवाल खड़ा करती है......
सवाल नंबर -1- 16 साल की उम्र में बलात्कार करने वाला नाबालिग क्यों?
सवाल नंबर-2- क्या इस फैसले से अपराधियों को मदद नहीं मिलेगी?
सवाल नंबर-3- सेक्स की उम्र 16 तो फिर शादी की उम्र ज्यादा क्यों?
और
सवाल नंबर-4- अगर 16 उम्र का कोई भी इंसान अगर सहमति से संबंध बना सकता है तो फिर उसे लिए अडल्ट फिल्में देखना क्यों प्रतिबंधित है?
वाकई में सवाल तो बेहद गंभीर है.... लेकिन अगर सहमति की उम्र को 16 मानकर देखा जाए तो इसके पक्ष में कुछ अहम बाते सामने आती हैं जो इस उम्र को कुछ हद तक सही बताती हैं....
सेक्स को लेकर सार्वजिनक स्तर पर भारतीय जनमानस में जो विचार हैं.... वो बहुत ही संकुचित हैं शायद इस बात को लेकर कोई दो राय नहीं हो सकती.... इस संकुचित सोच के पीछे कई कारण हैं जिसमें से एक कारण है सेक्स की शिक्षा .... जिसका भारतीय समाज में पूरी तरह से अभाव है.... इस सेक्स की शिक्षा न होने से समाज में सेक्स को लेकर अराजक्ता का एक माहौल सा बन गया है.... इन सब के बीच अगर सहमति की उम्र की बात करें तो इसे 16 साल करना वाजिब नहीं लगता लेकिन इसके बावजूद ऐसी कई कारण हैं जो 16 साल उम्र की वकालत करते हैं....
1-    समाज की सच्चाई-
भारत के शहरी समाज की बात करें तो यहां पर शादी का चलन 20 साल के बाद ही है..... और ये परंपरा अब गांव में भी होनी शुरु हो गई है.... ये हमारे समाज का एक चेहरा है लेकिन एक और चेहरा है जिसकी तरफ समाज देखने से कतराता है और वो चेहरा है शादी से पहले यौन संबंध बनाने का.. जी हां... भारत में ऐसे युवाओं की तादाद काफी ज्यादा है जो शादी से पहले ही यौन संबंध बना लेते हैं.. ऐसे हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यह कहना है भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का... जिसने नौजवानों के सेक्स रुझान को लेकर एक सर्वे किया... और इस सर्वे में पाया गया कि आधे से ज्यादा युवा आबादी शादी से पहले ही संबंध बना चुकी होती है....

2-    सिस्टम है जिम्मेदार-
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब के लगाए न लगे, और बुझाए न बुझे... गालिब के ये शब्द आज के दौर में भी बिलकुल सही लगते हैं..... ये बात बिलकुल अजीब लगती है कि अभी का मौजूदा सिस्टम हमें वो समाज दे  रहा है जिसमें लड़के जवानी की दहलीज पर आने से पहले ही बलात्कारी होने के ठप्पे और शर्म के साथ जिंदगी बिताने को मजबूर हो जाते हैं.... इसके पीछा का तर्क यह है कि सेक्स एक ऐसी चीज़ है जो प्राकृतिक रूप से सहज है और जब कोई इंसान धीरे-धीरे जवानी की ओर कदम रखता है वैसे-वैसे उसके भीतर सेक्स को लेकर उत्सुक्ता भी बढ़ती जाती है...  ऐसे में अगर कोई नाबालिग सहमति से संबंध बनाता है और लड़की उस पर अपनी सहमति भी जता देती है... तो कानून लड़की को तो बरी कर देता है लेकिन लड़के को बलात्कारी घोषित कर दिया जाता है... इससे सीधे-सीधे उस लड़के की जिंदगी और करियर पर सवालिया निशान लग जाता है.... भले ही समाज इस कम उम्र के प्यार को नादान कह कर उन्हें नैतिक्ता का पाठ पढाए लेकिन क्या हमेमें से कोई भी ये गवारा कर सकता है कि सिर्फ नादानी के लिए किसी लड़के पर हमेशा-हमेशा के लिए बलात्कारी होने का ठप्पा लग जाए? लेकिन दुर्भाग्य से यह सब हो रहा है…..
सहमति की उम्र को 16 साल करने से कई लोग और खासकर परंपरावादी लोग को खासी आपत्ती है.... कुछ लोगों का कहना है कि इस कदम से सामाजिक मूल्यों में गिरावट और अराजक्ता फैलेगी.... वहीं सेक्स वैज्ञानिकों का कहना है कि सेक्स के बारे में स्त्री-पुरुष दोनों के विचार अलग-अलग होते हैं। लोग अक्सर अपनी शिक्षा और ज्ञान के आधार पर सेक्स की परिभाषा देते हैं.... यह सच है कि आज हमारा समाज बदल रहा है... खान-पान, रहन-शहन, सब कुछ धीरे-धीरे बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रहा है.... लाईफ अब पहले से ज्यादा सोशल होने लगी है.... इंटरनेट के इस दौर में जहां सब कुछ पार्दर्शी बनता जा रहा है .. वहीं लगातार युवाओं और बच्चों में भी सेक्स जैसी चीजों को लेकर खुलापन बढ़ रहा है....  और इसी का ये नतीजा है कि आज ज्यादातर बच्चे युवावस्था में पहुंचने से पहले ही शारीरिक संबंध बना चुके होते हैं.... या यूं कहें कि वक्त से पहले ही बच्चे अब युवावस्था की सीढ़ी पर कदम रख रख रहे हैं... लेकिन इस सब बातों के बाद जो सवाल अब खड़ा होता है वो यह है कि आखिर क्या यह सब घटनाएं समाज को सही दिशा में ले जा रही हैं या गलत? अगर सेक्स को लेकर समाज में शिक्षा और जानकारी की बात करें तो हम पाएंगे की सेक्स जैसे टॉपिक को लेकर हमारा समाज पहले से ही संकुचित है.... इसलिए स्कूलों में सेक्स को लेकर किसी भी तरह की शिक्षा का कोई व्यापक इंतजाम नज़र नहीं आता.... ऐसे में अगर 16 की उम्र में सहमति की बात करें तो यह थोड़ा गलत दिखाई पड़ता है.... कुछ समाजशास्त्री औऱ परंपरावादी ये तर्क देते हैं कि जब और सभी चीज़ों में एक समझ विकसित होने की उम्र कम से कम 18 साल है तो सिर्फ सहमति से सेक्स के लिए दो साल की यह छूट क्यों और किसलिए....  लेकिन इन सब के अलावा एक आखिरी और अहम सवाल ... यह कहना तो आसान है कि युवा पीढ़ी अपने भले बुरे का फैसला अपने विवेक से करे न कि सिर पर लटकी कानूनी तलवार के डर से लेकिन क्या 16 साल का युवा शादी , सेक्स और करियर जैसे मामलों में स्वविवेक से निर्णय लेने में समर्थ होता है?
बहरहाल सेक्स एक ऐसा विषय जिसे हमें तीनो बिंदओं पर परखना जरूरी है.. कानूनी, वैज्ञानिक और नैतिक .... तीनों ही कसौटी पर कसकर कोई निर्णय लेना ही समझदारी होगी।

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