Thursday 9 May 2013

आधुनिक समाज के अनाधुनिक संस्कार

कहते हैं समाज वो आईना है जिसमें संस्कृति की झलक दिखाई देती है यानि की किसी भी देश या जगह की संस्कृति को आपको देखना हो या फिर उसके बारे में जानना हो तो बस जरूरत है उस समाज में कुछ देर जीने की....  दरअसल इस दौर में ज्यूं-ज्यूं हमारा समाज आधुनिक होता गया... वैसै-वैसे उसके संस्कार अनाधुनिक होते चले गए या यूं कहें कि सफलता की दौड़ में समाज तो आगे निकल गया लेकिन संस्कार वहीं के वहीं खड़े रहे... अब यहां पर एक अहम सवाल खड़ा होता है कि आखिर समाज और संस्कार किसके हाथों में है और इन्हें आगे बढ़ाने का दायित्तव किसका है.... इन सब सवालों के जवाब तलाशने के लिए हमें अतीत के धरातल पर उतरकर वर्तमान की ओर बढ़ना होगा... दरअसल किसी भी समाज और वहां के संस्कारों की जननी होती है संस्कृति और इस संस्कृति की वाहक होती है भाषा जो इन्हें (समाज और संस्कार) एक वैश्विक पहचान दिलाती है... खैर मुद्दे  पर आते हैं.... संस्कार का आधुनिक समाज से पिछड़ जाने के पीछे उन मूल्यों का ह्रास है जो विकास की अंधी दौड़ में अपना दम तोड़ देते हैं.... जिस संस्कृति के बीज से संस्कार की एक फलती फूलती बेल निकलती है ... उसे समाज के वो मूल्य एक झटके में काट देते हैं, जो येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह से विकास और आधुनिकता को हासिल करना चाहते हैं.... समाज में नैतिक्ता को ताक पर रखकर हर काम किया जा रहा है... बचपन में खरगोश और कछुए की वो कहानी तो आपने खूब सुनी होगी जिसमें इन दोनों के बीच में दौड़ की एक प्रतिस्पर्धा होती है और खरगोश अपने आलस्य के चलते हार जाता है... लेकिन समाज और संस्कार की इस दौड़ में समाज थोड़ा चालाक निकला इसने पहले खुद ही संस्कार को पंगु बनाया और आखिर में जीत को अपने नाम पर दर्ज कर लिया.... ऐसे में आप खुद ही बताई कि आधुनिक समाज में संस्कार कैसे आधुनिक हो सकते हैं?

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