अब बात कुछ ऐसे ईमांदार अफसरों की जो राजनीतिक बाहुबलियों का निशाना बने......
इनमें सबसे पहले नाम आता है.... बिहार के गोपालगंज जिले के डीएम रहे जी. कृष्णैया
की.....बिहार कैडर के 1985 बैच के दलित
आईपीएस अधिकारी जी कृष्णैया एक सुलझे हुए प्रशासक थे... इसके अलावा मीठा बोलना और जमीन से जुड़कर काम
करना उनकी कार्यशैली में शुमार था... और शायद यही एक ईमांदार व्यक्ति की विशेषता
भी है..... गांधी जी के सिद्धांतो पर चलने वाले कृष्णैया मानते थे कि अपराधी बुरे
नहीं होते बल्कि अपराध बुरा होता है.. इसलिए उनकी हमेशा कोशिश रहती थी कि किस तरह
से अपराधियों को सुधारकर समाज की मुख्यधारा में वापिस लाया जाए... उनका मानना था
कि गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी ही
युवाओं को अपराध की दुनिया में ले जाने का अहम कारण हैं.... अगर उन्हें रोजी रोटी
के विकल्प मुहैया कराए जाएं तो निश्चित ही
वो अपराध छोड़ देंगे.... लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि इतने सद्विचारों वाला शख्स
एक दिन राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार बन जाएगा..... तारीख 5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर के
रास्ते होते हुए हाजीपुर से गोपालगंज लौट रहे कृष्णैया को राष्ट्रीय राजमार्ग 28
पर खाबरा गांव के नजदीक भीड़ ने अपना निशाना
बनाया और उनकी हत्या कर दी...दरअसल इस भीड़ का नेतृत्व बिहार के बाहुबली नेता आनंद
मोहन और उनके कई साथी कर रहे थे...दरअसल एक दिन पहले ही मुजफ्फरपुर में आनंद मोहन
की पार्टी के नेता रहे छोटन शुक्ला की हत्या हुई थी.... जिसके विरोध में आनंद मोहन
के साथ कई नेता और लोगों ने प्रदर्शन शुरु किया... इस भीड़ में शामिल लोग छोटन शुक्ला के शव के
साथ प्रदर्शन कर रहे थे... इस सिलसिले में गिरफ्तार आनंद मोहन को अदालत ने फांसी
की सजा सुनाई थी जिसे बाद में हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा में तब्दील कर दिया
था... जुलाई 2012 में सुप्रीम
कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा.... हद तो तब हो गई जब कृष्णैया के
हत्यारे आनंद मोहन ने जेल से ही 1996 का लोकसभा चुनाव समता पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की.... 2 बार सांसद रहे आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी एक बार संसद तक पहुंची लेकिन
बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले कृष्णैया का परिवार आज भी संघर्ष कर रहा
है.... कृष्णैया की हत्या के बाद उनकी पत्नी उमा को आज ईमानदारी से ही डर लगने लगा
है....
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