मैं एक खबरिया चैनल में काम करता हूं। चैनल में काम करना मेरा एक जुनून है, क्योंकि मुझे पत्रकारिता पसंद है। और पसंद भी क्यों न हो भला क्योंकि यही तो वो एक रास्ता है जो सच्चाई का प्रतीक है, जिसे लोकतंत्र में पारदर्शिता लाने का एक हथियार समझा जाता है। लेकिन औरों की तरह मेरी भी समझ पर गलतफहमी की धूल चढ़ी हुई थी। जिसे साफ किया मेरी एक दोस्त ने जो खुद भी उसी खबरिया चैनल में काम करती है। उसने मुझे कुछ ऐसी बातें बताईं जिसे सुनकर लगा कि मैं किस दल-दल में आ गिरा हूं। कई बुरे अनुभवों में से एक अनुभव उसने मेरे साथ साझा किssया। उसने बताया कि उसके सीनियर्स औऱ यहां तक कि चैनल के मालिक ने भी अपने पद की ताकत और गुरूर में उसे बार-बार उस चीज़ के लिए एप्रोच किया जिसे फिल्मी दुनिया वाले कास्टिंग काउच कहते हैं। मेरी वो दोस्त भी मेरे ही तरह कई सपने संजोए इस फील्ड में आई है उसने भी पत्रकारिता को एक जुनून की तरह देखा है, समझा है... उसकी ये सब बातें सुनकर तो एकदम से लगा कि इस फील्ड को छोड़ दिया जाए... लेकिन फिर एकाएक खयाल और सवाल दोनों आय़ा कि छोड़ देना ही मात्र एक उपाय है क्या.... जवाब तलाशने के लिए अपने अंतरमन में गया तो जवाब आय़ा.... “नहीं”..... नहीं इसलिए नहीं क्योंकि मैं एक लड़का हूं और मुझे इन सब से क्या लेना-देना... मेरा क्या बिगड़ता है... नहीं इसलिए क्योंकि मैं एक आशावादी इंसान हूं... मुझे लगता है कि परिस्थितियों या मजबूरियों में फंसने के बजाए उसका डटकर सामना करना समस्या को खत्म करने का बेहतर उपाय है..... रात भर अपनी दोस्त के साथ हुई उस घटना के बारे में सोचता रहा.... और कोशिश करता रहा कि किसी तरह इसकी जड़ में जाउं.... बहुत गहन चिंतन-मंथन के बाद मेरे ज़ेहन में एक सवाल आया कि आखिर इस दुनिया का बादशाह कौन है...? उत्तर ढूंढा तो पता चला कि इस दुनिया पर तो बाजार का राज है.... और इस दुनिया में जितनी भी चीज़ें होती हैं.. उसे ये बाजार ही तो चलाता है.. बाजार के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ... तो क्या फिर ये दुनिया का बादशाह बाजार है..? फिर और थोड़ा चिंतन-मनन करने पर जवाब मिला कि नहीं बाजार तो सिर्फ एक हथियार है..... इस हथियार को जिसने पकड़ा है असल में वो इस दुनिया का बादशाह है.... अब भला कौन है जो पूरे बाजार को चलाता है तो फिर से मन की गहराई में उतरा और पता लगाया कि वो कौन है..? मन की गहराई से जब बाहर निकला तो साथ में एक उत्तर भी था और वो था आदमी.... जी हां... जिसे हम पुरुष भी कहते हैं... पुरुष ही वो शख्स है जो पूरे बाजार को नियंत्रण करता है.... और इसीलिए एक पुरुष मनोवृत्ति होने के चलते वो हमेशा से यही चाहता है कि किसी तरह औरत को कमजोर किया जाए और उसका दमन किया जाए..... येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह से उसका शोषण हो... उसे आगे न बढ़ने दिया जाए.. दरअसल ये सच्चाई है कि पुरुष की मनोवृत्ति में महिला एक वस्तु के समान है जिसे वो समाज से उसका इस्तेमाल करने के लिए उठाता है और फिर उसी समाज में उसको इस तरह से वापस रख देता है जहां उसे हिकारत की नज़रों से देखा जाता है.... इस पूरे मानसिक मंथन में जो कुछ बातें निकल कर आईं.... वो कहीं न कहीं मेरे दोस्त के साथ हुई उस घटना से मिलती हुई नज़र आती हैं...... बहरहाल फिर बात वहीं आकर लौट जाती है और एक आशावादी पुरुष होने के नाते मेरे ज़ेहन में फिर से वही सवाल खड़ा होता है कि इसका उपाय क्या है...? उपाय के तौर पर मेरे सामने जो तस्वीर बनती है वो ये है कि अगर इस बाजार की कमान पुरुष के हाथों से निकलकर महिलाओं के हाथों में आ जाए..... तो महिलाओं के प्रति पुरुषों की जो मानसिकता है कहीं न कहीं उसमें बदलाव नज़र आएगा... और ऐसा करने के लिए... महिलाओं को ही आगे बढ़कर आना होगा और सभी क्षेत्रों में आकर काम करना होगा... हालांकि ऐसा नहीं है कि महिलाएं ऐसा नहीं कर रही हैं..... बस जरूरत है तो और ज्यादा सक्रीय होने की क्योंकि अगर वो जितना ज्यादा सक्रीय होंगी उतनी ही जल्दी ये समस्या भी खत्म होगी....!!
Tuesday 5 March 2013
आईने के पीछे...
मैं एक खबरिया चैनल में काम करता हूं। चैनल में काम करना मेरा एक जुनून है, क्योंकि मुझे पत्रकारिता पसंद है। और पसंद भी क्यों न हो भला क्योंकि यही तो वो एक रास्ता है जो सच्चाई का प्रतीक है, जिसे लोकतंत्र में पारदर्शिता लाने का एक हथियार समझा जाता है। लेकिन औरों की तरह मेरी भी समझ पर गलतफहमी की धूल चढ़ी हुई थी। जिसे साफ किया मेरी एक दोस्त ने जो खुद भी उसी खबरिया चैनल में काम करती है। उसने मुझे कुछ ऐसी बातें बताईं जिसे सुनकर लगा कि मैं किस दल-दल में आ गिरा हूं। कई बुरे अनुभवों में से एक अनुभव उसने मेरे साथ साझा किssया। उसने बताया कि उसके सीनियर्स औऱ यहां तक कि चैनल के मालिक ने भी अपने पद की ताकत और गुरूर में उसे बार-बार उस चीज़ के लिए एप्रोच किया जिसे फिल्मी दुनिया वाले कास्टिंग काउच कहते हैं। मेरी वो दोस्त भी मेरे ही तरह कई सपने संजोए इस फील्ड में आई है उसने भी पत्रकारिता को एक जुनून की तरह देखा है, समझा है... उसकी ये सब बातें सुनकर तो एकदम से लगा कि इस फील्ड को छोड़ दिया जाए... लेकिन फिर एकाएक खयाल और सवाल दोनों आय़ा कि छोड़ देना ही मात्र एक उपाय है क्या.... जवाब तलाशने के लिए अपने अंतरमन में गया तो जवाब आय़ा.... “नहीं”..... नहीं इसलिए नहीं क्योंकि मैं एक लड़का हूं और मुझे इन सब से क्या लेना-देना... मेरा क्या बिगड़ता है... नहीं इसलिए क्योंकि मैं एक आशावादी इंसान हूं... मुझे लगता है कि परिस्थितियों या मजबूरियों में फंसने के बजाए उसका डटकर सामना करना समस्या को खत्म करने का बेहतर उपाय है..... रात भर अपनी दोस्त के साथ हुई उस घटना के बारे में सोचता रहा.... और कोशिश करता रहा कि किसी तरह इसकी जड़ में जाउं.... बहुत गहन चिंतन-मंथन के बाद मेरे ज़ेहन में एक सवाल आया कि आखिर इस दुनिया का बादशाह कौन है...? उत्तर ढूंढा तो पता चला कि इस दुनिया पर तो बाजार का राज है.... और इस दुनिया में जितनी भी चीज़ें होती हैं.. उसे ये बाजार ही तो चलाता है.. बाजार के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ... तो क्या फिर ये दुनिया का बादशाह बाजार है..? फिर और थोड़ा चिंतन-मनन करने पर जवाब मिला कि नहीं बाजार तो सिर्फ एक हथियार है..... इस हथियार को जिसने पकड़ा है असल में वो इस दुनिया का बादशाह है.... अब भला कौन है जो पूरे बाजार को चलाता है तो फिर से मन की गहराई में उतरा और पता लगाया कि वो कौन है..? मन की गहराई से जब बाहर निकला तो साथ में एक उत्तर भी था और वो था आदमी.... जी हां... जिसे हम पुरुष भी कहते हैं... पुरुष ही वो शख्स है जो पूरे बाजार को नियंत्रण करता है.... और इसीलिए एक पुरुष मनोवृत्ति होने के चलते वो हमेशा से यही चाहता है कि किसी तरह औरत को कमजोर किया जाए और उसका दमन किया जाए..... येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह से उसका शोषण हो... उसे आगे न बढ़ने दिया जाए.. दरअसल ये सच्चाई है कि पुरुष की मनोवृत्ति में महिला एक वस्तु के समान है जिसे वो समाज से उसका इस्तेमाल करने के लिए उठाता है और फिर उसी समाज में उसको इस तरह से वापस रख देता है जहां उसे हिकारत की नज़रों से देखा जाता है.... इस पूरे मानसिक मंथन में जो कुछ बातें निकल कर आईं.... वो कहीं न कहीं मेरे दोस्त के साथ हुई उस घटना से मिलती हुई नज़र आती हैं...... बहरहाल फिर बात वहीं आकर लौट जाती है और एक आशावादी पुरुष होने के नाते मेरे ज़ेहन में फिर से वही सवाल खड़ा होता है कि इसका उपाय क्या है...? उपाय के तौर पर मेरे सामने जो तस्वीर बनती है वो ये है कि अगर इस बाजार की कमान पुरुष के हाथों से निकलकर महिलाओं के हाथों में आ जाए..... तो महिलाओं के प्रति पुरुषों की जो मानसिकता है कहीं न कहीं उसमें बदलाव नज़र आएगा... और ऐसा करने के लिए... महिलाओं को ही आगे बढ़कर आना होगा और सभी क्षेत्रों में आकर काम करना होगा... हालांकि ऐसा नहीं है कि महिलाएं ऐसा नहीं कर रही हैं..... बस जरूरत है तो और ज्यादा सक्रीय होने की क्योंकि अगर वो जितना ज्यादा सक्रीय होंगी उतनी ही जल्दी ये समस्या भी खत्म होगी....!!
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कड़वी सच्चाई बतायी आपने....
ReplyDeleteजंग छिड़ चुकी है..बस जीतना बाकी है...और हम आजाद होंगे.....
ReplyDeleteये एक वो सच्चाई है....जिसे बढ़ावा देने वाले लोग इसे झूठा बताते हैं...
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