Sunday 31 March 2013

‘सुगबुगाहट’



            
  
मन की दहलीज़ पर ये कैसी सुगबुगाहट..?
कजरारी आंखों की गहराईयों में छिपी कुछ अनकही, कुछ अनसुनी दास्तां....
कोमल हाथों के स्पर्श से पूरे शरीर में दौड़ती ईश्क की लहर...
बसंत ऋतु की खुशनुमाई समेटे लंबे काले बालों की घनघोर छटा...
पूर्णिमा की चांदनी जैसा गोरा बदन....
चमेली की सुगंध जैसी गोरे बदन से निकलती जानी-पहचानी सी खुशबू.... जो रोम-रोम में प्यार का ज्वार पैदा कर देती है....
शायद यही वो सुगबुगाहट है जो मन की दहलीज़ पर होती है.... 

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