स्वर्ग की छांव पर बैठे हो तुम आसन लगाकर
नर्क की तपती धूप में खड़ी होकर मैं कर रही हूं तुम्हारी सेवा,
ढूंढ रही हूं हर ठौर तुम्हें ..... मीरा की तरह तुम्हें पाने को बेताब थी...
तुम्हें खोजती इन नज़रों को देख रहा था कोई और...,
मैनें सोचा तुम हो...,
लेकिन वो तुम्हारे वेश में था कोई बहरूपिया...
जिसने बनाया मेरे शरीर को अपना दासी ...
और आखिर मैं बन बैठी देवदासी...!!
very good, well done.
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