Tuesday 12 March 2013

ईमांदारी के बदले मौत ! (Part-2)



               
                         
                 


सत्येंद्र दूबे हत्याकांड को समझने में दरअसल एक बात जो सामने आती है वो ये है कि भारतीय सियासत में नेताओं, माफियों और नौकशाहों का एक शक्तिशाली गठजोड़ बना हुआ है.... जिसे तोड़ना शेर के मुंह में हाथ डालने जैसा है..... दरअसल इन सब के बीच सिस्टम फेल्यॉर की बात भी सामने निकलकर आती है..... बहरहाल विरोध जारी रहा और ईमांदारी की कीमत मौत से चुकाने का सिलसिला भी.... अकेले ही चले थे जानिबे मंजिल की तरफ लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया..... भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सत्येंद्र दूबे अकेले नहीं थे .... एक शख्स और था जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद किया.... और कमोबेश इस शख्स को भी विरोध की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। उस शख्स का नाम है...षणमुगम मंजूनाथ
           
मंजूनाथ लखनउ के इंडियन ऑयल इकाई में बतौर सेल्स मैनेजर काम कर रहे थे..... लेकिन दूबे की ही तरह मंजूनाथ ने भी कहीं कुछ गलत होता पाया और उस गलत के खिलाफ आवाज़ उठाई ..... दरअसल ये पूरा मामला तेल में मिलावट का था..... इस मिलावट के धंधे में एक तेल माफियाओं का एक बड़ा रैकेट शामिल था.... जिसका भंडाफोड़ किया मंजूनाथ ने.....


1978 में जन्में षणमुगम मंजूनाथ बचपन से ही मेधावी छात्रों में गिने जाते थे... केंद्रीय विद्यालय से अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल करने वाले मंजूनाथ ने उसी स्कूल से 1995 में साईंस को चुनकर 12 वीं पास की... एक इंजीनियर बनने का सपना देख रहे मंजूनाथ ने मैसूर के श्री                जयचमाराजेंद्र कॉलेज से कंप्यूटर साईंस में इंजीनियर की डिग्री हासिल की.... और इसके बाद उन्होनें प्रतिष्ठित संस्थान IIM लखनउ से एमबीए की डिग्री ली....  डिग्री लेने के बाद मंजूनाथ के लिए नौकरी करने के लिए कई कंपनियों से ऑफर आने लगे लेकिन मंजू ने इंडियन ऑयल में नौकरी करना पसंद किया....जोश से लबरेज इस 27 साल के युवा ने जब कंपनी में काम करना शुरु किया तो कई जगह पर छापेमारी की और मिलावटखोरों की जमकर खबर ली... शुरुआत में बतौर फील्ड मैनेजर काम कर रहे मंजूनाथ पूरी ईमांदारी के साथ अपना काम कर रहे थे.... उन्हें यूपी के पेट्रोल पंपों में तेल की गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी दी गई थी..... अब मंजूनाथ के सामने दो रास्ते थे.... पहला मिलावट खोरों के साथ मिलकर तेल के खेल में शामिल हो जाना .... ये रास्ता बहुत ही सुविधाजनक और आसान था..... लेकिन जो दूसरा रास्ता था वो बहुत कठिन था क्योंकि ये रास्ता ताकतवर माफियों के खिलाफ था जिनसे उलझना मौत को दावत देना जैसा था.... एक ईमांदार अफसर होने के नाते मंजूनाथ ने दूसरा रास्ता चुना... इसलिए नहीं क्योंकि वो सबकी नज़रों में एक हीरो बनना चाहते थे बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें ईमांदारी सुकून देती थी.....
                   
उत्तरप्रदेश का लखीमपुर खीरी जिला.... जहां दो पेट्रोल पंप को तीन महीने के लिए इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि यहां पर तेल में मिलावट का धंधा चल रहा था.... ये आदेश दिया था मंजूनाथ ने ..... लेकिन करीब एक महीने के भीतर ही चोरी छुपे वो पेट्रोल पंप दोबारा से शुरु हो गया..... जैसे ही इस बात की भनक मंजूनाथ को लगी तो उन्होनें 19 नवंबर 2005 को चुपके से उस जगह पर रेड मारी.... लेकिन अपराधियों के पास हथियार थे लिहाज़ा उन्होनें मंजूनाथ को मौके पर ही गोलियों से छलनी कर दिया..... इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी कि मंजूनाथ किसी जगह पर रेड मारने जा रहे हैं..... इस बात का खुलासा तब हुआ जब उनके पिता ने उन्हें मैसेज किया कि तुम कहां हों.... तो मंजूनाथ की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं आया.... अगले दिन सीतापुर जिले के महोली इलाके में एक कार से मंजूनाथ की लाश बरामद हुई ... सीतापुर में ही लाश को निपटाने गए आरोपी राकेश आनंद और विवेक शर्मा वहीं पकड़े गए ..... केस दर्ज होने के बाद कोर्ट ने हत्या के मुख्य अभियुक्त पेट्रोल पंप मालिक पवन कुमार मित्तल को फांसी की सजा सुनाई, जबकि सात अन्य अभियुक्तों को उम्रकैद.... इस हत्या को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' करार देते हुए जज एस. एम. ए. आबिदी ने कहा कि...
 “19 नवंबर 2005 को हुई मंजूनाथ की हत्या पूरी तरह नियोजित थी, क्योंकि इस काम में अलग-अलग जगह रहने वालों के हथियार इस्तेमाल किए गए थे।

इस केस के बाद एक बार फिर से ये साबित होता दिखा कि किस तरह से इमांदारी की कीमत जान देकर चुकानी पड़ती है.. हम मंजूनाथ की इमांदारी और उनके इस जज्बे को सलाम करते हैं।

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